यह तथाकथित “नॉन-वेज दूध” विवाद है — भारत-अमेरिका के बीच चल रही व्यापार वार्ताओं में एक अहम और विवादास्पद मुद्दा। इसे संक्षेप और स्पष्ट रूप में ऐसे समझें:
क्या है “नॉन-वेज दूध” मुद्दा?
• भारत की शर्त है कि कोई भी आयातित डेयरी उत्पाद ऐसे पशुओं से न आया हो, जिन्हें मांस, खून, मछली का आटा, पोल्ट्री की बीट या अन्य पशु-आधारित चारे नहीं खिलाए गए हों।
• इसका कारण है धार्मिक और सांस्कृतिक संवेदनशीलता — भारत में बड़ी आबादी शाकाहारी है और दूध का धार्मिक-सांस्कृतिक महत्व बहुत गहरा है।
• अमेरिका का कहना है कि यह शर्त अनावश्यक व्यापारिक बाधा (Trade Barrier) है, और इस पर आपत्ति WTO में दर्ज कराई गई है। उनका तर्क है कि अगर वैज्ञानिक आधार पर कोई खतरा साबित नहीं है, तो यह प्रतिबंध अनुचित है।
सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक पहलू
सांस्कृतिक/धार्मिक पहलू:-
• भारत में दूध को पवित्र माना जाता है, और पशु-आधारित चारे से प्राप्त दूध को कई लोग “अशुद्ध” मानते हैं।
• अमेरिका में डेयरी गायों को अक्सर मांस, मछली और पोल्ट्री उत्पादों से बने चारे खिलाए जाते हैं, जो भारतीय मान्यताओं से मेल नहीं खाता।
आर्थिक असर:-
• भारतीय डेयरी क्षेत्र 80 मिलियन (8 करोड़) छोटे किसानों को रोज़गार देता है और देश की GDP में लगभग 2.5–3 % योगदान करता है।
• अगर अमेरिकी डेयरी को खुली अनुमति दी गई, तो दूध के दाम 15 % तक गिर सकते हैं, जिससे किसानों को लगभग ₹1.03 लाख करोड़ सालाना का नुकसान हो सकता है।
• यही कारण है कि भारत डेयरी आयात पर ऊँचे टैरिफ लगाता है — पनीर पर 30%, मक्खन पर 40%, और मिल्क पाउडर पर 60%।
व्यापार वार्ताओं में गतिरोध:-
• भारत ने अन्य अमेरिकी उत्पादों (जैसे बादाम, क्रैनबेरी, बोरबॉन) पर रियायतें दी हैं, लेकिन डेयरी और कृषि को लेकर कोई समझौता नहीं किया है।
• अमेरिका चाहता है कि भारत डेयरी बाजार खोले, लेकिन भारत इसे “रेड लाइन” मानकर टाल रहा है।
• नतीजतन, 2025 की हालिया भारत-अमेरिका व्यापार वार्ताएँ असफल हो गईं, और टैरिफ में वृद्धि के साथ दोनों देशों में तनाव बढ़ गया।
संक्षेप में, यह विवाद सिर्फ दूध पर नहीं, बल्कि भारत के सांस्कृतिक मूल्यों, किसानों की आजीविका और अमेरिका की व्यापारिक महत्वाकांक्षाओं के टकराव पर केंद्रित है। “नॉन-वेज दूध” शब्द इसी टकराव का प्रतीक बन चुका है।
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