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“Sansad Monsoon Session 2025: हंगामा, Important Bills और Political संकेत”

संसद का मानसून सत्र 2025: हंगामे, अहम विधेयक और अगली राजनीति के संकेत

 

               21 अगस्त 2025 को संसद का मानसून सत्र औपचारिक रूप से अनिश्चितकाल के लिए स्थगित हो गया। यह सत्र एक तरफ़ जहां गरमा-गरम राजनीतिक टकरावों के लिए सुर्ख़ियों में रहा, वहीं दूसरी तरफ़ कई अहम विधेयकों के पारित होने के कारण नीति-निर्माण के पटल पर भी उतना ही महत्वपूर्ण साबित हुआ। दोनों सदन—लोकसभा और राज्यसभा—ने दिन भर के तीखे आरोप-प्रत्यारोप, नारेबाज़ी और विपक्षी विरोध के बीच कामकाज पूरा किया और सत्र का पटाक्षेप किया।

क्या-क्या हुआ—एक त्वरित झलक

सबसे अहम कानून: ऑनलाइन गेमिंग पर शिकंजा

               इस सत्र में सबसे ज़्यादा चर्चा ‘प्रमोशन एंड रेगुलेशन ऑफ़ ऑनलाइन गेमिंग बिल, 2025’ पर रही। राज्यसभा ने अंतिम दिन इस विधेयक को पारित किया, इससे एक दिन पहले लोकसभा में भी सहमति बन चुकी थी। कानून का मूल उद्देश्य वास्तविक धन (real-money) से जुड़े ऑनलाइन गेम्स पर नियंत्रण सख़्त करना, लत, धन-शोधन और वित्तीय धोखाधड़ी जैसे ख़तरों को सीमित करना है। यह डिजिटल अर्थव्यवस्था और उपभोक्ता संरक्षण के संतुलन की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है। लागू होने के बाद, राज्यों के नियामकों, प्रवर्तन एजेंसियों और आईटी मंत्रालय की समन्वित भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाएगी।

खेल प्रशासन, समुद्री क़ानून और अन्य नीतिगत पहल

               ऑनलाइन गेमिंग के साथ-साथ राष्ट्रीय खेल शासन (National Sports Governance) से जुड़ा विधेयक और समुद्री क्षेत्र में क़ानूनों का आधुनिकीकरण भी सुर्ख़ियों में रहा। बंदरगाहों और शिपिंग सेक्टर के लिए कई प्रमुख समुद्री क़ानूनों का पैकेज पारित होना, लॉजिस्टिक्स इकोसिस्टम के सुधार और निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने के प्रयासों का संकेत देता है। खेल प्रशासन से जुड़े सुधार फेडरेशनों की जवाबदेही, पारदर्शिता और एंटी-डोपिंग अनुपालन को सुदृढ़ करने की दिशा में उन्मुख हैं।

क्यों रहा सत्र इतना टकरावपूर्ण?

1) चुनावी पारदर्शिता और SIR का विवाद

               बिहार में मतदाता सूची के स्पेशल इंटेंसिव रिविज़न (SIR) को लेकर विपक्ष लगातार मुखर रहा। उनका आरोप था कि चुनावी प्रक्रिया में हस्तक्षेप और अनियमितताओं की आशंका है; उधर, सरकार का तर्क था कि यह प्रक्रिया नियमसम्मत है और पारदर्शिता बढ़ाने के लिए है। इस मुद्दे पर लगातार नारेबाज़ी और वेल में आना—दोनों ही सदनों की कार्यवाही में व्यवधान का कारण बना।

2) सत्ता–विपक्ष की सीधी टक्कर

               प्रधानमंत्री और विपक्ष के नेता के बीच ऑपरेशन ‘सिंदूर’ जैसे सुरक्षा-संबंधी मुद्दों पर आरोप-प्रत्यारोप ने माहौल को और तीखा किया। सदन के बाहर भी बयानबाज़ी जारी रही, जिससे बहसों का स्वर भावनात्मक और आक्रामक बना रहा।

3) उपराष्ट्रपति पद को लेकर राजनीतिक हलचल

               हालाँकि उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का इस्तीफ़ा 22 जुलाई को हो चुका था, लेकिन सत्र के दौरान यह विषय कई बार चर्चा में आया—ख़ासकर उनके स्वास्थ्य कारणों और आगे की राजनीतिक समीकरणों के संदर्भ में। नए उपराष्ट्रपति के चुनाव को लेकर भी अटकलें बनी रहीं, जिनमें संभावित चेहरों और गठबंधनों की रणनीति पर चर्चा जारी रही।

सत्र के संदेश: लोकतंत्र की ऊँच-नीच, लेकिन नीतिगत आगे बढ़त

                भारतीय संसद में शोर-शराबा कोई नया नहीं; परन्तु 31% जैसी कम उत्पादकता चिंता का विषय है। यह बताता है कि विपक्ष के पास तीखी मुद्दावार रणनीति है, और सत्ता पक्ष का विधायी एजेंडा भी तेजी से आगे बढ़ रहा है। दोनों के बीच रस्साकशी का सीधा असर जनता के लिए बनने वाले कानूनों की गुणवत्ता और बहस की गहराई पर पड़ता है। फिर भी, ऑनलाइन गेमिंग जैसे उभरते क्षेत्र में स्पष्ट नियमन और समुद्री कानूनों के आधुनिकीकरण जैसे कदम दिखाते हैं कि नीति मोर्चे पर गति बनी हुई है

आम नागरिक के लिए क्या मायने?

  1. ऑनलाइन गेमिंग:
      • अगर आप या आपके परिवार के सदस्य ऑनलाइन गेम्स खेलते हैं, तो KYC, आयु-सीमा, समय-सीमा और लेनदेन की पारदर्शिता जैसी शर्तें कड़ी हो सकती हैं।
      • गलत विज्ञापनों, नकली ऐप्स और संदिग्ध वॉलेट्स पर निगरानी बढ़ेगी। इससे लत और वित्तीय जोखिम कम होने की उम्मीद है।
  2. खेल प्रशासन:
      • फेडरेशनों में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ने से खिलाड़ियों के चयन, प्रशिक्षण और फ़ंडिंग में सुधार संभव।
      • बड़े टूर्नामेंटों के आयोजन और बुनियादी ढाँचे में निवेश को गति मिल सकती है।
  3. समुद्री अर्थव्यवस्था:
      • नए क़ानून लॉजिस्टिक्स कॉस्ट घटाने, एक्सपोर्ट-इम्पोर्ट प्रक्रियाओं को सरल करने और कोस्टल शिपिंग को प्रोत्साहन देने की दिशा में मदद करेंगे। यह अप्रत्यक्ष रूप से रोज़गार और कीमतों को प्रभावित कर सकता है।

राजनीति का रोडमैप: आगे क्या?

सरांश:

               मानसून सत्र 2025 भारतीय लोकतंत्र की दोहरी प्रकृति का प्रतीक रहा—एक तरफ़ तीखे टकराव और कम उत्पादकता; दूसरी तरफ़ उभरती अर्थव्यवस्था और डिजिटल समाज के लिए महत्वपूर्ण क़ानूनी ढाँचे का निर्माण। ऑनलाइन गेमिंग जैसे नए क्षेत्र में स्पष्ट नियम, खेल प्रशासन में सुधार और समुद्री क़ानूनों का आधुनिकीकरण यह संदेश देता है कि भारत नए-युग की चुनौतियों के अनुरूप खुद को ढाल रहा है। आने वाले दिनों में उपराष्ट्रपति चुनाव, विपक्ष की रणनीति, और राज्यों की राजनीति—सभी मिलकर अगले सत्र की दिशा तय करेंगे। नागरिकों के लिए सबसे ज़रूरी है कि वे इन नीतिगत परिवर्तनों को समझें, अपने डिजिटल और आर्थिक फैसलों को उसी अनुरूप ढालें, और लोकतांत्रिक भागीदारी—आलोचना और सुझाव—के साथ बहस को रचनात्मक बनाएँ।

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